रघुकुल रीति सदा चली आई प्राण जाई पर बचन न जाई, राम न्यायप्रिय थे उनका शासन रामराज्य कहलाता हैं : प्रो. ललित तिवारी

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श्री राम तो अद्भुत श्री राम ही है ।भारतीय संस्कृति का आधार श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम है जिन्हे व्रिशा, वैकर्तन(सुर्य का अन्श), श्रीरामचंद्रजी, श्रीदशरथसुतजी, श्रीकौशल्यानंदनजी, श्रीसीतावल्लभजी, श्रीरघुनन्दनजी, श्रीरघुवरजी, श्रीरघुनाथजी, ककुत्स्थकुलनंदन नामो से भी जाना जाता है । श्री राम अयोध्या में जन्मे और मर्यादा के पालन के लिए राज्य ,माता पिता तक को त्याग दिया । विष्णु के अवतार श्रीराम का जन्म 23 वे चतुर्युग के त्रेता में हुआ था । उन्होंने करीब 11000 वर्ष अयोध्या का शासन किया था । उनके पिता के वचन के लिए 14 वर्ष वनवास जाना हुआ अहंकारी रावण का अंत किया ।रामेश्वर में शिवलिंग स्थापित किया जो की ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध हैं नवरात्रि शक्ति की पूजा कर समुद्र पर पुल बनाया ।पुष्पक विमान से वापस आए ।वाल्मीकि ने रामायण की रचना की तो गोस्वामी तुलसीदास ने भक्तिभावपूर्ण सुप्रसिद्ध महाकाव्य रामचरितमानस की रचना की थी। अन्य भारतीय भाषाओं में भी रामायण की रचनाएँ हुई हैं, जो काफी प्रसिद्ध भी हैं। स्वामी करपात्री ने रामायण मीमांसा में विश्व की समस्त रामायण का लेखा हैं , दक्षिण के क्रांतिकारी पेरियार रामास्वामी व ललई सिंह की रामायण भी मान्यता प्राप्त है। भारत में श्री राम अत्यन्त पूजनीय हैं और आदर्श पुरुष हैं तथा विश्व के कई देशों में भी श्रीराम आदर्श के रूप में पूजे जाते हैं जिसमें नेपाल, थाईलैण्ड, इण्डोनेशिया शामिल।है । श्री राम की परम्परा रघुकुल रीति सदा चलि आई प्राण जाई पर बचन न जाई की थी। राम न्यायप्रिय थे उनका शासन रामराज्य कहलाता हैं।
राम ने मुश्किलों का सामना शिष्टता पूर्वक किया न तो क्रोधित हुए, न किसी को कोसा और न घबराए या उत्तेजित हुए। हर स्थिति को उन्होंने बहुत ही मर्यादित रहे ।धैर्य राम का दूसरा नाम है। राम भारत की आत्मा हैं, प्राण हैं तथा उपास्य हैं. त्रेतायुग के रामचरितमानस एवं श्रीमद्भगवतगीता सहित सभी धर्म-ग्रंथों में भगवान के अवतार का उल्लेख मिलता है ।
श्री राम भारतीयों के मन ह्रदय में बसते है । भारत में नमस्कार करने के लिए राम राम, जय सियाराम जैसे शब्दों को प्रयोग में लिया जाता है। ये भारतीय संस्कृति के आधार हैं।
कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंढ़ै बन माहि।
ऐसे घट-घट राम हैं, दुनिया देखे नाहि॥

संत कबीर के इस दोहे का अर्थ है – अपनी ही कस्तूरी की महक से बौराया हिरन उस कस्तूरी को वन-वन खोजता फिरता है। क्योंकि वह इस बात से अनजान है कि कस्तूरी उसकी अपनी ही नाभि में छिपी है। इसी तरह राम (स्वअनुभव) इंसान के अंदर ही है। उसे उसका अनुभव भी होता है मगर उस अनुभव को समझने में नाकाम इंसान राम को बाहर वनों, पहाड़ों, मंदिरों, कर्मकाण्डों में खोजता है।
रामनिराकार, निर्गुण, अजन्मा, अनंत, निरंतर, असीम, सर्वव्यापी है। हम सब राम का अनुभव करते ही है ।अपने भीतर के ‘राम’ (अनुभव) को जागृत करना है।

राम…राम…राम… प्रेम ,भीतर गहरी शांति और आनंद का अनुभव करता हैं , जो उन्हें सकारात्मक ऊर्जा प्रदान होती है ।
राम परमचेतना का, ईश्वर का नाम है। जो हर मनुष्य के अंदर उसके हृदय में निवास करता है। मानवशरीर ‘दशरथ’ है। अर्थात दस इंद्रियाँ रूपी अश्वों का रथ। इस रथ के दस अश्व हैं – दो कान, दो आँखें, एक नाक, एक जुबान, एक (संपूर्ण) त्वचा, एक मन, एक बुद्घि और एक प्राण। इस दशरथ का सारथी है – ‘राम’। राम इंद्रियों का सूरज है। उसी के तेज से शरीर और उसकी इंद्रियाँ चल रही हैं। जब शरीर रूपी रथ पर चेतना रूपी राम आरूढ़ होकर इस का संचालन अपने हाथों में लेते हैं तभी वह सजीव होकर अभिव्यक्ति करता है। शरीर दथरथ है तो सारथी राम, शरीर शव है तो शिव (चेतना) राम…। राम से वियोग होते ही दशरथ का अस्तित्त्व समाप्त हो जाता है। इन दोनों का मिलन ही अनुभव और अभिव्यक्ति का, जड़ और चेतना का, परा और प्रकृति का मिलन है। अपने सारथी राम के बिना दशरथ उद्देश्यहीन है और दशरथ के बिना राम अभिव्यक्ति विहीन।
जिससे लोग ऊर्जा, शांति और आनंद महसूस करने लगते हैं।इसीलिएकण-कण में राम,क्षण-क्षण में राम । राम न मिलेंगे हनुमान के बिना

Gunjan Mehra